भू-आकृति विज्ञान शब्द हिंदी भाषा के तीन पदों से मिलकर बना है| भू+आकृति+विज्ञान, यहाँ भू से तात्पर्य पृथ्वी, आकृति से तात्पर्य स्वरुप एवं विज्ञान से तात्पर्य व्यवस्थित तार्किक विवेचना से है| अर्थात, भू-आकृति विज्ञान का अर्थ हुआ, “पृथ्वी के स्वरुप की व्यवस्थित तार्किक विवेचना करने वाला शास्त्र“|
इसके लिए अंग्रेजी में Geomorphology शब्द का प्रयोग किया जाता है| मुख्यतः भू-आकृति विज्ञान की विषयवस्तु के अंतर्गत पृथ्वी की उत्पत्ति, आयु, आतंरिक संरचना, समस्थिति, भू-संचलन, महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति, चट्टानें, प्रकर्म, स्थलाकृतियों के वर्गीकरण को सम्मिलित किया जाता है|
भू-आकृति विज्ञान: मुख्य तीन विभाग
भूगोल की इस शाखा को अध्यनन की दृष्टि से तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है, जो इस प्रकार है,
- संरचना,
- प्रकर्म एवं
- विभिन्न रूपों का वर्गीकरण तथा क्रमिक विकास की अवस्थाएं
उपर्युक्त, तीनों,विभागों में गत्यात्मकता है| इनकी पारस्परिक क्रियाएं अत्यंत जटिल है| इनकी प्रवृति एवं तीव्रता, समय व स्थान के साथ बदलती रहती है|
संरचना
संरचना का निर्धारण मुख्यतः आतंरिक बलों से होता है| भू-आकृतिक संरचना के अंतर्गत हम, निम्नलिखित बिंदुओं की व्याख्या करेंगे,
- प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics),
- भू-संचलन (Earth Movement),
- ज्वालामुखी क्रिया,
- भू-पटल की संरचना,
- महाद्वीपों एवं महासागरों का विन्यास,
- शैलों की प्रकृति,
- पर्वतों तथा वलनों के निर्माण एवं
- पारस्परिक क्रियाएं
भू-आकृति प्रकर्म
प्रकर्म का सम्बन्ध आतंरिक एवं बाह्य बलों से होता है| इनमें सबसे अधिक व्यापक गुरुत्वीय बल है| इसके द्वारा पृथ्वी धरातल पर वस्तुओं का ऊपर से नीचे की और स्थानांतरण निर्धारित होता है|
भू-आकृतिक प्रकर्म दो प्रकार के होते है,
- बाह्यजनित बल
- अंतर्जनित बल
विभिन्न रूपों का वर्गीकरण तथा क्रमिक विकास की अवस्थाएं
भू-आकृतियों का वर्गीकरण और उनके क्रमिक विकास अवस्थाओं को भू-आकृति विज्ञान की विषय-वास्तु में शामिल करते है| भू-आकृति विकास में संरचना एवं प्रकर्म दोनों भूमिका निभाते हैं|
अब तक हमने भू-आकृति विज्ञान के मुख्य तीन विभागों का अध्ययन किया, उनको परिभाषित किया| अब अगली ब्लॉग-पोस्ट में हम भू-आकृतियों का आकार एवं क्षेत्रफल के आधार पर वर्गीकरण पढ़ेंगे|
धन्यवाद एवं शुभेच्छा|😊
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