भू-आकृतियों का आकार एवं क्षेत्रफल आधारित विभाजन!! पिछली पोस्ट में हमने भू-आकृतियों का मुख्यरूप से विभाजन पढ़ा था| अब हम पढ़ेंगे, आकार एवं क्षेत्रफल के आधार पर भू-आकृतियों को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जाता है,
- प्रथम श्रेणी के उच्चावच
- द्वितीय श्रेणी के उच्चावच
- तृतीय श्रेणी के उच्चावच
आकार एवं क्षेत्रफल आधारित विभाजन
प्रथम श्रेणी के उच्चावच
इस वर्ग के अंतर्गत महाद्वीपीय प्लेटफॉर्म्स (Continental Platforms) तथा महासागरीय बेसिन (Oceanic Basins) आते है| इन दोनों के मिलन-स्थल पर महादेशीय किनारे (Continental Margins) पाए जाते हैं|
द्वितीय श्रेणी के उच्चावच
इसके अंतर्गत महाद्वीपों पर पर्वत, पठार एवं मैदान स्थलाकृतियां आती है| महासागरीय तल पर कंटक, गर्त (Trenches), अगाध सागरीय मैदान एवं महादेशीय किनारों की स्थलाकृतियां आती है|
द्वितीय श्रेणी के उच्चावच के निर्माण में आतंरिक बलों (Endogentic Forces) (पटल विरूपिणी एवं ज्वालामुखी) की क्रियाओं का महत्व होता है|
यद्यपि कुछ मैदानों तथा पठारों का निर्माण अपरदन द्वारा भी होता है, परन्तु मुख्य बल इन संरचनाओं के लिए आतंरिक बल ही कहलाता है| इन्हें रचनात्मक स्थलरूप (Constructive features) कहते हैं| मुख्यतः यह तृतीय वर्ग की स्थलाकृतियों के विकास के लिए आधार प्रस्तुत करते हैं|
तृतीय श्रेणी के उच्चावच
द्वितीय श्रेणी के स्थलरूपों पर विकसित सूक्ष्म स्थालकरियों को तृतीय श्रेणी उच्चावच कहा जाता हैं| इनका निर्माण बाह्य बलों (Exogenetic Forces) के द्वारा होता हैं| घाटियां, प्रपात, पुलिन, एस्कर, ड्रमलिन बालुका स्तूप तथा अनेक छोटी-छोटी स्थलाकृतियां इनमे सम्मिलित हैं|
बाह्य बलों के द्वारा धरातल पर उच्चावच के निम्नीकरण या सपाटीकरण का कार्य किया जाता है| अर्थात आतंरिक बलों द्वारा पृथ्वी पर जो विषमताएं उत्पन्न की जाती हैं, उन्हें कम करने में बाह्य बल अपनी भूमिका निभाते हैं| बाह्य बलों को विनाशात्मक स्थलरूपों (Destructive features) की संज्ञा दी जाती हैं|
इस प्रकार, अभी तक हमनें भू-आकृतिक विज्ञान के विभाजन एवं स्थलाकृतियों के बारे में पढ़ा| आगे आने वाली ब्लॉग पोस्ट्स में हम उपर्युक्त लिखित प्रत्येक स्थलाकृति का विस्तार से अध्ययन करेंगे|
धन्यवाद एवं शुभेच्छा|😊
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